कोरोना महामारी और कुशासन की दोहरी मारः देश में हाहाकार
आर.एस. यादव
हर रोज दिल दहला देने वाली खबरें सामने आ रही हैं। बिहार के बक्सर जिले के चैसा प्रखंड के चैसा श्मशान घाट पर गंगा में तैरती लाशें मिली हैं। प्रशासन का कहना है कि 40-50 लाशें होंगी, पर स्थानीय लोगों का कहना है कि लाशों की संख्या इससे कहीं अधिक है। स्थानीय पत्रकारों का दावा है कि उन्होंने 40-50 से अधिक लाशों गंगा में तैरती देखी हैं। जो तस्वीरें सामने आ रही हैं वे आदमी को हिलाकर रख देती हैंऋ लाशों को जानवर नोचते दिख रहे थे। चैसा के प्रखंड विकास अधिकारी ने कहा है कि 30 से 40 लाशें गंगा में मिली हैं। इस बात की संभावना है कि ये लाशें उत्तर प्रदेश से बहकर आयी हैं, स्थानीय लोगों ने बताया है कि लाशें यहां की नहीं हैं। गाजीपुर, बलिया और छपरा में भी गंगा में लाशें बहती दिखाई दीं।
गंगा में तैरती ये लाशें भारत में कोरोना के कहर की जीती-जागती तस्वीर पेश करती हैं। अस्पतालों के सामने अपने मरीज को भर्ती कराने की जद्दोजहद में लगे लोगऋ एम्बुलेंसों, तीन पहिया वाहनों या निजी वाहनों में पड़े आक्सीजन की आस में तडपते और दम तोड़ते मरीज, अस्पतालों में जगह न मिल पाने के कारण अपने घरों में बेबस और बेईलाज मरते लोगऋ श्मशान घाटों पर दिन-रात चैबीस घंटे जलती हुई चिताओं की कतारें और रोते-बिलखते परिजनऋ लोगों में खौफ, दहशत और मातम-इतने बुरे दिन भारत ने कभी नही ंदेखे। भारत के लोगों को ‘‘अच्छे दिन’’ लाने का सब्जबाग दिखाया गया था और पैदा किए ये हालात!
कोरोना महामारी को तो प्रकृति के प्रकोप का नाम दिया जा सकता हैऋ पर अस्पतालों में ईलाज के लिए बैड न मिलेऋ जिसे आक्सीजन की जरूरत है उसे आक्सीजन न मिले, जिसे दवाई की जरूरत है उसे दवाई न मिले-इसके लिए तो प्रकृति जिम्मेदार नहीं। इसके लिए तो वही जिम्मेदार है जो शासन कर रहे हैं और लोगों को ईलाज मुहैया कराने की जिम्मेदारी से मुंह चुरा रहे हैं।
अभी तक दुनिया में कोरोना के ईलाज के लिए किसी सटीक दवा की इजाद नहीं हुई है, परन्तु काफी हद तक बचाव करने वाले टीकों की इजाद हो चुकी है। भारत में टीकों के उत्पादन की दुनिया में सबसे बड़ी क्षमता है। पर देश में शासन करने वाले लोगों-खासकर केन्द्र सरकार के कुशासन, निकम्मेपन और जनविरोधी चरित्र का यह आलम है कि देश के लोगों को टीका मिलना भी मुश्किल हो गया है। देश की जरूरत को ध्यान में रखे बगैर 6.5 करोड़ टीकों का निर्यात कर दिया गया। पहली मई से सभी वयस्कों के टीकाकरण की घोषणा कर दी गयी। परन्तु देश के अधिकांश राज्यों में जब पर्याप्त मात्रा में टीका ही नहीं है तो टीकाकरण अभियान कैसे आगे बढ़ेगा? विभिन्न राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में टीकों की कमी है।
अन्य राज्यों की बात तो छोड़िए, देश की राजधानी दिल्ली के पास टीके नहीं हैं। दिल्ली सरकार ने 10 मई को जारी बुलेटिन में कहा कि अगर टीकों की आपूर्ति नहीं हुई तो 12 मई को टीकाकरण केन्द्रों को बंद करना पड़ेगा।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 9 मई को देश में लगभग 7 लाख लोगों को टीका लगाया गया। यदि टीकाकरण की यही रफ्तार रही तो देश की पूरी आबादी को टीके की दोनों खुराक लगने में कई साल का समय लग जायेगा और लोग बड़ी संया में यूं ही मरते रहेंगे।
दिल्ली की राज्य सरकार की शिकायत है कि उसने राजधानी के लिए टीके की 1.34 करोड़ खुराक का विनिर्माताओं को आॅर्डर दिया था, लेकिन केन्द्र सरकार ने मात्र 3.5 लाख खुराक की इजाजत दी है। अन्य राज्यों में भी टीके की ऐसी ही कमी है। आंध्र प्रदेश प्रदेश सरकार का कहना है कि स्थिति इतनी खराब है कि सरकार ने लोगों को पहला टीका लगाना बंद कर दिया है। यही हाल उत्तर प्रदेश का है। टीके की कमी के कारण राज्य के अनेक स्थानों पर लोगों को टीके की पहली खुराक नहीं दी जा रही है। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में लगातार दूसरे दिन 10 मई को भी टीके की खुराब उपलब्ध न होने के कारण टीकाकरण केन्द्रों से उन लोगों को भी निराश लौटना पड़ा जो टीके की दूसरी खुराक लेने के लिए पहुंचे थे। सभी राज्यों में टीके की कमी का कमोबेशी यही हाल है।
कोवैक्सीन भारत में ही विकसित टीका है। अभी केवल भारत बायोटेक हैदराबाद ही उस टीके का उत्पादन कर रहा है और उसकी उत्पादन क्षमता अत्यन्त सीमित है। भारत में निजी क्षेत्र में और सरकारी क्षेत्र में अनेक ऐसी दवा निर्माता कम्पनियां हैं जो कोवैक्सीन का उत्पादन कर सकती हैं। भारत में विकसित होने के कारण इसमें पेटेंट कानून भी आड़े नहीं आता। परन्तु फिर भी केन्द्र सरकार अन्य कम्पनियों से इसका उत्पादन कराने को तैयार नहीं। इसका कारण इसके अलावा क्या हो सकता है कि सरकार जानती है कि अन्य कम्पनियां इसका उत्पादन करने लगी तो भारत बायोटेक हैदराबाद का मुनाफा कम हो जाएगा और भारत सरकार का अवश्य ही कुछ निहित स्वार्थ है कि वह नहीं चाहती कि इस कम्पनी के मुनाफे पर कोई आंच आए। कम्पनी का मुनाफा सरकार के लिए लोगों की जिंदगी से ज्यादा मायने रखता है। यही तो पूंजीवाद का चरित्र है।
कम्पनियों के मुनाफों में केन्द्र सरकार की कितनी अधिक दिलचस्पी है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि उसने वैक्सीन निर्माता कम्पनियों-कोविशील्ड निर्माता सीरम इंस्टिट्यूट आॅफ इंडिया, पुणे और कोवैक्सीन निर्माता भारत बायोटैक, हैदराबाद को टीके की कीमतें बढ़ाने की इजाजत दे दी। कोविशील्ड की एक खुराक की कीमत भारत सरकार के लिए 150 रूपये, राज्य सरकार के लिए 300 रूपये और निजी अस्पतालों के लिए 600 रूपये और कोवैक्सीन की एक खुराक की कीमत केन्द्र सरकार के लिए 150 रूपये, राज्य सरकार के लिए 400 रूपये और निजी अस्पतालों के लिए 1200 रूपये कर दी गयी है।
कोविड-19 महामारी के दौरान आवश्यक चिकित्सा सामग्रियों एवं सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने टीके और आक्सीजन जैसी चीजों की कमी आदि का स्वतः संज्ञान लिया। टीके की भिन्न-भिन्न कीमतों पर भी सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और सरकार से इस सबंध में जवाब मांगा।
इसके जवाब में 10 मई को केन्द्र सरकार ने एक हलफनामा दिया है। उसमें सरकार का जोर इस बात पर है कि सुप्रीम कोर्ट इन मामलों में दखल न करेंऋ ज्यादा दखल से मुश्किलें बढ़ेंगी।
केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसने कोविड-19 से निपटने के लिए ‘‘न्यायसंगत और भेदभाव रहित’’ टीकाकरण नीति तैयार की है और किसी भी प्रकार के ‘‘अत्यधिक’’ न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणम हो सकते हैं। उसने कहा कि राज्य सरकारों एवं टीका विनिर्माताओं के काम में शीर्ष अदालत को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
केन्द्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि ‘‘कार्यकारी नीति के रूप में जिन अप्रत्याशित एवं विशेष परिस्थितियों में टीकाकरण मुहिम शुरू की है, उसे देखते हुए कार्यपालिका पर भरोसा किया जाना चािहए।’’
केन्द्र, राज्यों एवं निजी अस्पतालों के लिए टीकों की अलग-अलग कीमतों को सही ठहराते हुए केन्द्र ने कहा कि टीकों की कीमत का कारक का अंतिम लाभार्थी यानी टीकाकरण के पात्र व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि सभी राज्य सरकारों ने पहले ही अपनी नीति संबंधी घोषणा कर दी है कि हर राज्य अपने निवासियों का निशुल्क टीकाकरण करेगा।
टीकों एवं दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पेटेंट कानून के तहत अनिवार्य लाइसेंस प्रावधान को लागू करने के मामले पर सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मुख्य बाधा कच्चे माल एवं आवश्यक सामग्री की उपलब्धता से जुड़ी है और इसलिए कोई भी और अनुमति या लाइसेंस को लागू करने से तत्काल उत्पादन संभवतः नहीं बढ़ेगा। सरकार के इस कथन में यह निहित है कि वह नहीं चाहती कि कोवैक्सीन के उत्पादन का काम अन्य किसी कम्पनी को भी दिया जाए।
हलफनामे में सरकार ने यह भी कहा है कि टीकों की खुराकों की सीमित उपलब्धता के कारण पूरे देश का एक बार में टीकाकरण संभव नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट सरकार के इस हलफनामे पर क्या राय बनायेगा, इसका पता अगली सुनवाई में ही चलेगा।
पर देश के आम लोग इस हलफनामे से यह जरूर समझ सकते हैं कि सरकार टीकाकरण के संबंध में भी बहुत गंभीर नहीं है, उसका सारा ध्यान टीका कम्पनियों को अधिक से अधिक मुनाफे का अवसर मुहैया कराना है।
निजी अस्पतालों के लिए कोविशील्ड के 600 रूपये प्रति खुराक और कोवैक्सीन के लिए 1200 रूपये प्रति खुराक के अर्थ को समझना जरूरी है। इसका अर्थ यह है कि सरकारी टीकाकरण केन्द्रों पर, जहां लोग मुफ्त में टीका लगवा सकते हैं, टीके की कृत्रिम कमी पैदा की जायेगी ताकि लोग अपनी जान बचाने के लिए अधिकाधिक संख्या में निजी अस्पतालों में टीका लगवाने के लिए मजबूर हो जाएं। जो अस्पताल टीके को 600 रूपये में खरीदेगा, वह उसके लिए टीका लगवाने वाले व्यक्ति से 700-800 रूपये या उससे भी अधिक वसूल करेगा। यदि टीकों की जबर्दस्त कमी का माहौल बना तो वे इन टीकों के लिए मनचाही कीमतें भी वसूल कर सकते हैं। निजी अस्पतालों को एक बड़ा कारोबार मुहैया कराने के लिए भी टीकों की अलग-अलग कीमतें तय की गयी।
उम्मीद करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट सरकार की इस चाल को समझ लेगा और टीकों की अलग-अलग कीमत को स्वीकार नहीं करेगा।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही सुस्पष्ट कर चुका है कि आक्सीजन, दवा और टीके की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की है। पर वह अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने में सर्वथा असफल रही है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह सख्त आदेश दिए जाने के बावजूद कि दिल्ली को प्रतिदिन 700 टन आक्सीजन मुहैया कराई जाए, केन्द्र ने केवल एक ही दिन पूरी सप्लाई की।
इस तरह के हालात के मद्देनजर 8 मई को सुप्रीम कोर्ट ने महामारी से निपटने में जन स्वास्थ्य प्रबंधन को मदद के लिए एक 12 सदस्यीय कार्यबल का गठन किया जिसका उद्देश्य राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेशों को आक्सीजन आवंटन के लिए कार्यप्रणाली तैयार करना है। जो काम केन्द्र सरकार को एक साल पहले ही करना चािहए था, उसके लिए भी सुप्रीम कोर्ट को आदेश देना पड़ा।
दरअसल, भले ही कोविड के नए मामले चार लाख से ऊपर पहुंच रहे हों और रोजाना चार हजार के करीब लोग मर रहे हों, मोदी सरकार की प्राथमिकता आज भी कोविड से निपटने और लोगों की जान बचाने में नही ंहै। उसकी प्राथमिकता तो दिल्ली में सेन्ट्रल विस्टा परियोजना ;संसद और मंत्रालयों के नए भवनद्ध और प्रधानमंत्री के लिए एक नया एवं भव्य आवास बनाने पर है। लोगों की सांस रूक रही है उसके लिए आक्सीजन मुहैया कराये, यह सरकार की प्राथमिकता ही नहीं, उसकी प्राथमिकता तो प्रधानमंत्री के लिए एक शानदार आवास बनाने पर है, सेन्ट्रल विस्टा पर है। जितना पैसा सेन्ट्रल विस्टा परियोजना और प्रधानमंत्री के लिए नए भव्य आवास पर खर्च किया जा रहा है उतना पैसा स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में खर्च किया जाता तो देश के हर जिले में एक आधुनिक एवं बड़े अस्पताल को बनाया जा सकता था जहां लोगों को ईलाज मिलता। पर मोदी सरकार की तो प्राथमिकता ही दूसरी है।