केरल में एलडीएफ ने रचा एक नया इतिहास
कानम राजेन्द्रन
2021 केरल विधानसभा चुनावों में एलडीएफ का नारा था ‘‘निश्चित तौर पर एलडीएफ’’। हमें पूरा भरोसा था कि केरल की जनता हमें भारी मतों के अंतर से जिताएगी और हमें एक ऐतिहासिक विजय प्राप्त होगी।
राज्य में वामपंथ विरोधी दुष्प्रचार किया गया, भाजपा-यूडीएफ एवं विभिन्न दक्षिणपंथी संगठनों ने वामपंथ के खिलाफ नापाक गठजोड़ किया। तो भी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट ने केरल विधानसभा के इन चुनावों में शानदार जीत दर्ज की। अच्युत मेनन सरकार के बाद एलडीएफ सरकार को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का अवसर मिला। अपने जन कल्याण कार्यों से एलडीएफ ने यह सुनिश्चित कर लिया था कि जनता के बीच सत्ता विरोधी भावना न पैदा हो।
अच्युत मेनन सरकार के समय ही टिकाऊ विकास के केरल माॅडल को संयुक्त राष्ट्र से भी मान्यता प्राप्त हुई थी। उस केरल माॅडल ने टिकाऊ वृ(ि एवं विकास को पुनर्परिभाषित किया। राज्य में मानवीय विकास को एक स्पष्ट स्वरूप प्रदान करने में अच्युत मेनन सरकार ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
वर्तमान एलडीएफ सरकार ने केरल माॅडल को आगे विकसित किया और उसे अन्य विशेषताएं प्रदान की। यह सि( हुआ कि केरल माॅडल कोविड-19 का भी सफलतापूर्वक सामना कर सकता है। कोविड से सामना करने का मतलब केवल चिकित्सीय सफलता पाना ही नहीं है। इसके बजाय कोविड वायरस पर विजय पाने का अर्थ है यह सुनिश्चित करना कि कोरोना वायरस से जो ढांचागत नुकसान पहुंचा और बदतर हुआ कोई भी व्यक्ति उसके कारण यह न समझे कि वह हाशिये पर चला गया है। प्रसि( सामाजिक चिन्तक एवं दार्शनिक नोएम चोमस्की के अनुसार, नव उदारवादी दौर के मद्देनजर, केरल ने कोविड का जिस तरह सामना किया, उससे वह विश्व के अन्य हिस्सों की तुलना में अलग नजर आया। कोविड महामारी ने अमीर और गरीब के बीच फासले को बढ़ाया जिससे हालात और अधिक विनाशकारी बने। कोरोना की वैश्विक महामारी से लड़ने में मुक्त बाजार क्रोनी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था असहाय एवं लाचार नजर आई। मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था लोगों का जीवन बचाने में नाकाम हो गयी और ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गयी जिसमें सरकारों को महसूस हुआ कि उन्हें कोविड-19 से मुकाबला करने के लिए अपनी पूरी ताकत और संसाधनों के साथ मैदान में उतरना चाहिए। इस प्रकार यह बात स्पष्ट हुई कि इस विश्व-महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र आवश्यक है। एक बार फिर पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की समस्याएं सामने आयी। इन तमाम बातों का सामना करने के लिए स्पेन और इटली जैसे देशों को विभिन्न संसाधनों और निजी अस्पतालों का राष्ट्रीयकरण करने के कदम उठाने पड़े।
केरल माॅडलः केरल आज जो सोचना है कल दुनिया उसका अनुकरण करेगी
भारत में 66 प्रतिशत लोगों को इलाज के लिए निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है। 33 प्रतिशत शहरी आबादी और 27 प्रतिशत ग्रामीण आबादी ही सरकारी स्वास्थ्य सेवा पर निर्भर करती है। इसका कारण यह है कि हर जगह सरकारी अस्पताल नहीं हैं और जहां हैं उनका इंतजाम ठीक नहीं है। सरकारी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे का अभाव है और सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने और बेहतर बनाने में कोई दिलचस्पी ही नहीं। इस प्रकार अधिकाधिक स्वास्थ्य सेवा निजी क्षेत्र में जा रही है। ;सभी आंकड़े नेशनल सेम्पल सर्वे के स्वास्थ्य सर्वेक्षणों सेद्ध
निजी क्षेत्र में इतनी क्षमता नहीं कि वह ऐसे संकट में बहुत बड़े पैमाने पर मदद कर सके। नतीजा यह है कि अधिकांश राज्य कोविड-19 की चपेट में आ गए और उन्हें नहीं सूझ रहा क्या करें। इससे अर्थव्यवस्था भी तबाह हो रही है और लोगों की जान भी जा रही है। आम आदमी तबाह हो रहे हैं। उनकी आमदनी कम हो गयी है। गरीबी, भूख और कम होती आमदनी से देश में असमानताएं बढ़ रही हैं। परन्तु इस मामले में केरल एक अपवाद है।
नीति आयोग की रिपोर्टों और विभिन्न स्वास्थ्य सर्वेक्षणों के अनुसार, सरकारी स्वास्थ्य सेवा के प्रबंधन में केरल सभी राज्यों से ऊपर है। केरल में एक मजबूत एवं कारगर स्वास्थ्य सेवा मौजूद है। केरल सरकार ने ‘‘कारेाबार को आसान’’ बनाने की दिशा में अच्छा काम किया है और बुनियादी ढांचा उन्नत है और स्वास्थ्य सेवा का पूरा का पूरा क्षेत्र अत्यन्त उत्तरदायी एवं कारगर रहा। इस कारण हम मृत्यु दर को कम रखने में कामयाब रहे। इलाज पर भारी खर्च किए बिना लोगों को बेहतरीन स्वास्थ्य सेवा मिली। पर बात यहां खत्म नहीं होती। अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण हमें गरीबी और भूख का सामना करना है। हम यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मेडिकल बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाया जाए और पड़ोसी राज्यों की भी कुछ मदद की जाए। एलडीएफ सरकार के पांच साल के कामकाज की बदौलत राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम मुनाफे में चल रहे हैं। इस अवसर पर सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों का भरपूर इस्तेमाल किया गया। केएमएमएल द्वारा विकसित आॅक्सीजन उत्पादन प्लान्टों ने सुनिश्चित किया कि राज्य को जितनी आॅक्सीजन की जरूरत है उससे अधिक मात्रा में उपलब्ध रहे। कोई भी भूखा न रहे इसके लिए सभी पंचायतों में सामुदायिक रसोईयां चलायी गयी। पिछली यूडीएफ सरकार ने राज्य की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बर्बाद करके रख दिया था। उसे फिर से खड़ा करने के लिए खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग ने जबर्दस्त काम किया। केरल सरकार ने यह भेद किए बिना कि किसके पास कौन सा राशनकार्ड है, सभी को फ्री राशन किट बांटे। एक तरफ तो यह स्थिति है कि लगभग 11 राज्यों ने केन्द्र सरकार द्वारा दिया गया फ्री राशन ही नहीं उठाया। दूसरी तरफ, केरल में न केवल केन्द्र सरकार द्वारा मिला फ्री राशन ;केवल उनको मिलता है जिनके पास प्राथमिकता वाला कार्ड हैद्ध बांटा बल्कि उसके अलावा अपना स्वयं का फ्री राशन किट भी बांटा। राज्य के इस फ्री राशन किट की व्यवस्था उस पैसे से की गयी जो सीएमडीआरएफ ;मुख्यमंत्री आपदा राहत कोषद्ध को जनता द्वारा दिए गए दान से मिला था, साथ ही उस पर सप्लाईको और सरकारी खजाने से भी खर्च किया गया।
आज की क्रोनी पूंजीवादी दुनिया में केरल एक समग्र वामपंथी माॅडल पर चलता है। 2008 के भूमंडलीय आर्थिक संकट के बाद प्रसि( अर्थशास्त्री स्टिग्लिट्ज की रिपोर्ट में अर्थव्यस्थाओं में ढांचागत बदलावों के सुझाव दिए गए थे। प्रख्यात अर्थशास्त्रियों ने सलाह दी थी कि सार्वजनिक क्षेत्र को सशक्त किया जाना चाहिए और बाजार को और अधिक सख्ती के साथ रेगुलेट किया जाना चाहिए। परन्तु दक्षिणपंथी अर्थशास्त्रियों और दक्षिणपंथी सामूहिक चेतना के निर्माताओं ने ऐसी सलाहों की उपेक्षा की। जोसफ स्टिग्लिट्ज ने सार्वजनिक क्षेत्र अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक हैंडबुक भी तैयार की थी। 1990 के शुरूआती वर्षों में अमेरिका के नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री केल रोगोफ ने कहा था कि मेडिकल क्षेत्र पर मुक्त बाजार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। उन्होंने तो यह भविष्यवाणी भी की थी कि पूंजीवाद और समाजवाद के बीच जो लड़ाई होगी वह जीवन प्रत्याशा और स्वास्थ्य सेवा के सम्बंध में होगी। परन्तु भारत या दुनिया ने उससे कोई सबक नहीं लिया।
नरेन्द्र मोदी ऐसे आर्थिक माॅडल पर आगे बढ़े जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश और आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने पर फोकस है। उनकी आर्थिक नीतियों ने निजीकरण को आगे बढ़ाया और आम आदमी के जीवन को कोई महत्व नहीं दिया। इससे गरीबी, भूख और असमानता में वृ(ि हुई है। बेरोजगारी की दर आसमान छूने लगी। लोगों की क्रयशक्ति खत्म हो गई। सामाजिक सुरक्षाओं को कमजोर किया गया। शिक्षा का व्यवसायीकरण किया गया और शिक्षा पर बजट कम किया गया। किसानों को उनकी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम दाम मिलता है और वह नृशंस मुक्त बाजार के रहमोकरम पर हैं।
इन तमाम बातों के लिए केरल माॅडल एक विकल्प पेश करता है। केरल माॅडल में शिक्षा निःशुल्क है। शिक्षा की गुणवत्ता उच्च है। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक दाम मिलता है, साथ में रायल्टी मिलती है। सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों में पूंजी लगाई जाती है और उन्हें संरक्षित रखा जाता है। वे मुनाफा कमाते हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाते हैं, मजबूत बनाने में मदद करते हैं। अस्पतालों में बेहतरीन बुनियादी ढांचे और बेहतरीन ईलाज को सुनिश्चित किया गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली मजबूत है जिससे राज्य भूखमुक्त है। राज्य में सामाजिक सुरक्षा और लोगों के उत्थान के लिए कल्याणकारी कार्यक्रमों की व्यवस्था है। राज्य में आवास योजनाओं पर ध्यान दिया गया है। नव प्रवर्तन और स्टार्टअप को बढ़ावा दिया गया है। केरल माॅडल मानवीय विकास, टिकाऊपन, बेहतर जीवन स्तर, समाजवादी नीतियों, लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण, महिला सशक्तीकरण, धर्मनिरपेक्षता एवं प्रगतिशील सोच पर आधारित है। केरल माॅडल भारत का भविष्य में मार्गदर्शन करेगा और कठिनाईग्रस्त मेहनतकशों के लिए एक विकल्प बनेगा।
सुशासन एवं कल्याण के पांच वर्ष
पिछले पांच वर्ष के दौरान सुशासन की उत्कृष्टता और कल्याणकारी कार्यक्रम एलडीएफ की चुनावी जीत के मुख्य कारक हैं। 2016 मंे जब एलडीएफ सत्ता में आया तो सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि यूडीएफ ने जो कुछ बर्बाद कर दिया है उसे वापस ठीक किया जाए। सारी व्यवस्था अस्त व्यस्त थी। 2016 के बाद केरल ने उत्कृष्ट सुशासन का दौर देखा। नीति आयोग ने भी केरल की उपलब्धियों को माना। विभिन्न सूचकांकों और टिकाऊ विकास लक्ष्यों ;सस्टेनेबल डवलपमेंट गोलद्ध के संबंध में रिपोर्टों में केरल हमेशा शीर्ष पर रहा। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और जीवन स्तर-हर मामले में केरल शीर्ष पर रहा। कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियों के बारे में कुछ विवरण देना उचित होगाः
- जो सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम घाटे में चल रहे थे, वे मुनाफा कमाने लगे। जो इकाईयां बंद थी, उन्हें खोला गया। उनसे मुनाफे के हिस्से के रूप में राज्य के खजाने को 12,908 करोड़ रूपये और केन्द्र के खजाने को 881 करोड़ रूपये मिले। केरल में करीब 137 सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम हैं। महामारी के दौरान भी लगभग 15 सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम मुनाफा कमा रहे हैं। नए सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों ने रोजगार के अवसर प्रदान किए।
- 1589 मावेली स्टोर सुपरमार्केट और 95 सबरी मेडिकल स्टोर, जो 15 प्रतिशत की रियायत पर दवाएं बेचते हैं, नागरिक आपूर्ति विभाग के तहत चल रहे हैं। 88.6 लाख राशनकार्ड धारकों को फ्री राशन दिया जाता है। कीमतें न बढ़े इसके लिए सप्लाइको के आउटलेट बाजार में काम कर रहे हैं। अब हरेक पंचायत में एक मावेली स्टोर है। प्रवासी मजदूरों एवं बिना राशन कार्ड वालों को फ्री राशन दिया जाता है। कुडुम्बश्री उत्पादों को विभिन्न सुपरमार्केटों में खास स्थान बिक्री के लिए रखा जाता है। छात्रों को 300 रूपए और 500 रूपए के मूल्य के फूड कूपन दिए जाते हैं।
- केरल पहला राज्य है जहां किसानों को राॅयल्टी दी जाती है। इसके लिए एक वेल्फेयर बोर्ड बनाया गया। लगभग 5000 एकड़ बंजर जमीन को बदला गया और कृषि योग्य बनाया गया। केरल कृषि उत्पादों के लिए भारत में सबसे अधिक दाम देता है। चावल उत्पादन ने रिकार्ड वृ(ि दर्ज की है।
- 4,265 भूमिहीन अनुसूचित जनजाति के लोगों को जमीन दी गयी। पांच साल में 177112 परिवारों को जमीन के पट्टे दिए गए। राजस्व विभाग ने भूमाफिया द्वारा कब्जा की गयी 865 एकड़ जमीन को छुड़ाया।
- सीमान्त समुदायों के लोगों को वित्तीय एवं भौतिक सहायता बढ़ाई गई। टेक्नीकल शिक्षा के लिए स्कूल खोले गए। सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ी है। शिक्षा का स्तर बढ़ा है। हम अब केरल के समाज को एक ज्ञान-समाज में बदलने का लक्ष्य रखते हैं।
केन्द्र सरकार ने पीठ में छुरा घोपा
केरल की जीत इस कारण और भी उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार द्वारा पीठ में छुरा घोपने के बावजूद यह जीत हासिल की गई। भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकारने केरल को कमजोर करने की भरपूर कोशिश की। केरल ही क्या, देश में हर गैर-भाजपा सरकार के साथ केन्द्र सरकार का ऐसा ही बर्ताव रहा। केरल ने ओरवी और निपाह जैसी दो बाढों से ही पार नहीं पायी बल्कि केन्द्र की एनडीए सरकार जैसी मुसीबत का सामना भी किया। 2014 के बाद से केन्द्र सरकार ने फंड और बजट आवंटनों में कटौती कर केरल को कमजोर करने की कोशिश की। - 2014-15 में मनरेगा के लिए केन्द्र की हिस्सेदारी 158 करोड़ रूपए की थी, 2016-17 में उसे घटाकर 71 करोड़ रूपए कर दिया गया।
- 2015-16 में केरल को केन्द्रीय बजट से 0.91 प्रतिशत मिला। पर 2021 में यह घटकर 0.61 प्रतिशत रह गया।
- 2011 से 2014 तक केन्द्रीय सरकारी कार्यक्रम ग्रांटों में केरल सरकार को 1000 करोड़ रूपए से अधिक मिले थे। एनडीए शासनकाल में यह घटकर उसका 35 प्रतिशत रह गया है।
- केन्द्रीय अनुदानों को केरल के प्रति व्यक्ति ट्रांसफर 1332 है जबकि अन्य राज्यों के लिए यह 1567 है।
- सर्व शिक्षा अभियान का फंड 413.43 करोड़ से कम होकर 206 करोड़ हो गया।
- केरल का तटीय इलाका 560 किलोमीटर का है, उसे मछली विकास के लिए 2016 में 115 करोड़ रूपए मिले जबकि हिमाचल का कोई तटीय इलाका ही नहीं और उसे 10 करोड़ रूपए मिले।
यूडीएफ और भाजपा का नापाक गठजोड़
जिस तरह 1959 में कम्युनिस्ट विरोधी मुक्ति आंदोलन चलाया गया था कुछ उसी तरह चुनाव के दौरान यूडीएफ और भाजपा के बीच एक नापाक गठजोड़ बना। जो प्रतिक्रियावादी केरल में वामपंथी शासन खत्म करना चाहते थे, उन सबने इस गठजोड़ का समर्थन किया। राज्य सरकार की छवि को खराब करने के लिए एनआईए और सीबीआई जैसी केन्द्रीय सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल किया गया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इसका विरोध किया। हमने अभियान चलाकर पर्दाफाश किया कि किस तरह जांच एजेंसियां भाजपा की दलाल बन गई हैं। केन्द्रीय एजेंसियों के डबल स्टेंडर्ड के संबंध में पार्टी ने केरल की जनता को विस्तारपूर्वक बताया। हमने बताया कि किस तरह भाजपा के नेताओं को बचाया जाता है और गैरभाजपा नेताओं को निशाना बनाया जाता है। परन्तु अपने वामपंथ विरोधी गठजोड़ के कारण कांगे्रस नेतृत्व वाला यूडीएफ इतना अंधा हो गया कि भाजपा का पक्ष लेने लगा। कांगे्रस उस एकजुटता को भी नहीं समझ पायी जो इस फासिस्ट विरोधी संघर्ष में हमने उन्हें दी थी।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूरे नैतिक समर्थन के साथ एलडीएफ ने इन एजेंसियों के खिलाफ स्टैंड लिया। अन्ततः केरल की जनता इन एजेंसियों के पक्षपातपूर्ण रवैये को समझ गई। इस प्रकार एक अन्य कम्युनिस्ट विरोधी एजेंडा नाकामयाब हो गया।
साम्प्रदायिकता अस्वीकृत
यूडीएफ और एनडीए ने सबरीमाला मुद्दे को इस चुनाव की एक मुख्य समस्या बनाने की कोशिश की। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो भी लोगों के दिल में साम्प्रदायिकता भड़काने के लिए इसे इस्तेमाल किया गया। वामपंथ विरोधी गठजोड़ ने एलडीएफ का काउन्टर करने के लिए धार्मिक भावनाओं को इस्तेमाल करने का रास्ता अपनाया। परन्तु केरल की जनता ने दक्षिणपंथ द्वारा किए गए विषवमन को स्वीकार नहीं किया। केरल की जनता ने एलडीएफ का समर्थन किया। चुनाव से पहले की अवधि में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस मुद्दे पर दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी ताकतों से जमकर लोहा लिया और उन्हें साहसपूर्ण बता दिया था कि सबरीमाला मुद्दा चुनाव पर असर नहीं डालेगा और जनता वामपंथ के पक्ष में ही जनादेश देगी। यह साबित हो गया है कि सबरीमाला मुद्दा मतदाताओं पर असर डालने में नाकामयाब रहा।
एलडीएफ की सरकार कल्याण योजनाओं पर काम जारी रखेगी, उत्कृष्ट किस्म का शासन प्रदान करेगी और फासिस्ट विरोधी-भाजपा विरोधी संघर्ष में आगे बढ़ती रहेगी। यह सरकार भारत में ऐसे व्यापक धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील गठबंधन बनाने की दिशा में अग्रणी भूमिका अदा करेगी जो भाजपा को सत्ता से हटाएगा। वामपंथ फासिज्म को परास्त करेगा। केरल माडल और केरल राज्य देश की दक्षिणपंथी ताकतों को चुनौती देता रहेगा।