कृष्ण की छवि

विचार—विमर्श

शाम का समय है, चिड़ियाँ अपने घर को जा रहीं हैं
मीरा रानी नदी किनारे बैठ कृष्ण-भजन गा रहीं हैं

दूर कहीं किसी गांव से बाँसुरी का स्वर सुनाई देता है
नदी के पार से देखो कृष्ण का मुखमंडल दिखाई देता है

नदी के बीच खिले लाल फूल होठों को दर्शा रहें हैं
पास खड़े पेड़ के पत्ते मुकुट में सजे रत्नों से दिख रहे हैं

होठों के बीच माखन के दाग सफेद कलियाँ है
मीराबाई के हाथों में रखे जामुन आखों की पुतलियाँ है

पेड़ो की टहनियाँ ले रहीं हैं हरि के नयनों का आकार
मीरा रानी के भूरे आँचल ने भौंहों को दिया संवार

पक्षी सूरज के चारों ओर तिलक से नज़र आते हैं
काले-नीले बादल साँवरे के केशों को दर्शाते हैं

अचानक सुहानी हवा मीठी खुशबु साथ लाती है
हवा के साथ मोरपंखों की बौछार आती हैं

प्रकृति भी क्या अद्भुत खेल दिखा रही है
जिसने उसे बनाया आज उसी के रूप में जगमगा रही है

शाम का समय है, चिड़ियाँ अपने घर को जा रहीं
मीरा रानी नदी किनारे बैठ कृष्ण-भजन गा रहीं है।

दिप्ती सिंह
छपरा , बिहार

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