किसान संसद ने कृषि कानून रद्द करने की मांग की
हमारे विशेष संवाददाता द्वारा
राष्ट्रीय राजधानी में जंतर मंतर पर ‘किसान संसद‘ 22 जुलाई, 2021 को आठ महीने के लंबे आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवाने वालों की याद में दो मिनट के मौन के साथ शुरू हुई। सत्र के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर बनने के लिए प्रत्येक दिन के लिए छह सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। किसान संसद का सत्र संसद के मानसून सत्र के साथ चलेगा।
संसद का मानसून सत्र चल रहा था, उस समय 200 किसानों का एक समूह केंद्र के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में जंतर-मंतर पहुंचा। संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा बनने वाले 40 संगठनों के पांच-पांच लोगों के साथ कुल मिलाकर इसमें हर दिन 200 लोग हिस्सा लेंगे।
एक किसान नेता के अनुसार, पहले दिन किसान संसद ने तीन अधिनियमों में से पहले किसान उत्पाद, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा अधिनियम) और यह किसानों को कैसे प्रभावित करता है और मंडियों की चोरी कैसे करता है, पर चर्चा की। सत्र में मीड़िया पर से प्रतिबंध हटाने का एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। इस प्रस्ताव पर 45 वक्ताओं ने अपनी राय दी।
किसानों ने अखिल भारतीय किसान सभा के स्पीकर हरदेव अर्शी, डिप्टी स्पीकर जगतार सिंह बाजवा और रणवीर सिंह बराड़ को कृषि मंत्री बनाने के साथ किसान संसद शुरू की।
दूसरे दिन, कृषि और किसान मंत्री ने अपना इस्तीफा दे दिया क्योंकि वह किसानों से नजरें नहीं मिला सकते थे। किसान संसद में रणवीर सिंह बराड़ ने केंद्रीय कृषि मंत्री के रूप में काम किया और सांसदों की भूमिका निभाने वाले अन्य प्रदर्शनकारियों द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब दिये।
बराड ने कहा कि मुझे केवल एक दिन के लिए मंत्री बनाया गया था और मंत्री के रूप में, मुझे इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि मेरे पास किसानों द्वारा मुझसे पूछे जा रहे सवालों का कोई जवाब नहीं था। मैं उनकी आंखों में आंखें डालकर नहीं देख सकता था। किसानों द्वारा की गई मांगें जायज हैं, इसलिए मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा-कम से कम नकली संसद के इस सत्र में।
मंत्री की भूमिका निभाने पर, बराड़ ने कहा कि जब भी मुझसे कोई प्रश्न पूछा जाता, तो मैं विषय बदल देता। अगर किसान मुझसे कानून के बारे में पूछते तो मैं उनसे रोजगार के बारे में बात करता। अगर वे मुझसे कुछ और पूछते, तो मैं कोविड के बारे में बात करना शुरू कर देता।
मंत्री द्वारा दिए गए हर जवाब पर एकत्रित प्रदर्शनकारियों ने ‘शर्म-शर्म‘ कहा। दूसरे दिन 52 सदस्यों ने बात की और छह ने संसद की कार्यवाही का संचालन किया, जिसमें पंजाब के अलावा तेलंगाना और उत्तराखंड के एक-एक स्पीकर शामिल थे। छह वक्ताओं में से एक अखिल भारतीय किसान सभा के हरदेव अर्शी ने कहा कि सितंबर 2020 में लाए गए एपीएमसी बाईपास अधिनियम को संसद द्वारा तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए, किसान संसद इस अधिनियम को निरस्त करती है, और संसद को भी ऐसा करने का आदेश देती है।
केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी की टिप्पणी का जवाब जिसमें उन्होंने किसानों को मावली ;रफियनद्ध कहा-जिसे उन्होंने बाद में वापस ले लिया-पर बोलते हुए हरदेव अर्शी ने कहा कि वे शब्दकोश में सबसे खराब शब्द ढूंढते हैं और हमें कहते हैं। एक मंत्री ने कहा कि किसानों को टेबल पर आकर बात करनी चाहिए। क्या कोई बातचीत के लिए कभी मावली को बुलाएगा? हम इसकी निंदा करते हैं।
नियमित संसद की तरह किसान संसद ने भी शनिवार और रविवार 24 और 25 जुलाई को अपना सत्र नहीं रखा।
किसान संसद का तीसरा कामकाजी दिन सोमवार 26 जुलाई था, जो सही में अनौखा था, जिस दिन महिला किसान संसद का आयोजन किया गया था।
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला किसान संसद की सदस्य पंजाब की एक सहायक प्रोफेसर, एक सेना अधिकारी की पत्नी और एक गृहिणी थीं, जो कभी-कभी हरियाणा में अपने गांव में महिला सशक्तिकरण के लिए काम करती हैं।
गांव बाबा सांग ढेसियां के एक कालेज में सहायक प्रोफेसर अमनदीप कौर संधू (32) ने कहा कि लोग मानते हैं कि घर वापस आने पर महिलाओं को घर के अंदर मिलना चाहिए। लेकिन कृषि कानूनों के विरोध के दौरान महिलाओं और पुरुषों ने मंच साझा किया और कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन जारी रखा। यहां की महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए बात की और इतनी कलात्मक रूप से बात की कि कोई सोच भी नहीं सकता। महिलाओं के नेतृत्व वाली इस संसद ने उनमें विश्वास पैदा किया है-भले ही वे दिखावा कर रही हों-वे एक दिन के लिए संसद की सदस्य बन गई थीं।
मोहाली निवासी सेना के एक अधिकारी की 40 वर्षीय पत्नी ने पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि वह यहां एकजुटता व्यक्त करने के लिए आई हैं। महिलाओं को अपने घरों के आराम से बाहर निकलने और आंदोलन का हिस्सा बनने की जरूरत है। मैं यहां इसलिए आया हूं क्योंकि यही समय की मांग है। मैं एक आर्मी वाइफ हूं और हम सभी किसानों के साथ खड़े हैं।
हरियाणा के एक गांव में महिला सशक्तिकरण के लिए काम करने वाले एक स्थानीय एनजीओ के साथ काम करने वाली 57 वर्षीय गृहिणी रामकली जंगडा ने कहा कि महिला संसद पहले दिन होनी चाहिए थी लेकिन उन्हें खुशी है कि ऐसा हुआ है। उन्होंने कहा कि यह महिलाएं ही हैं जो यह सुनिश्चित कर रही हैं कि यह विरोध सफल हो। वे खेत, घर और बच्चों की देखभाल करते हैं ताकि पुरुष इसका हिस्सा बन सकें। जब भी महिलाएं फ्री होती हैं, वे विरोध प्रदर्शनों में भाग लेती हैं। हमारे समर्थन के बिना कुछ भी संभव नहीं होता।
महिला संसद में सभापति और उपसभापति बनने वालों में एनएफआईडब्ल्यू की महासचिव एन्नी राजा, एडवा की उपाध्यक्ष जगमती सांगवान और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर शामिल थीं। तीन में से दो सत्रों में एक कृषि मंत्री भी बनाया गया।
एन्नी राजा ने कहा कि तीन प्रस्ताव पारित किये गये। महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जाये। यह बिल लंबित है। हमने यहां भी एक प्रस्ताव पारित किया। इसी तरह से इसे लोकसभा में भी पारित किये जाने का यह सही समय है।
सांगवान ने कहा कि ‘संसद‘ जरूरी है क्योंकि महिलाओं ने तीन कृषि कानूनों पर उन मुद्दों को साझा किया जो उन्हें सीधे प्रभावित करते हैं। हमने इस बारे में बात की कि हमें भूमि अधिकार कैसे दिया जाना चाहिए क्योंकि हमारे पास कोई अधिकार नहीं है। एक महिला को कर्ज चुकाना होगा यदि उसका किसान पति अपनी जान ले लेता है लेकिन उसे द्ऋण लेने की अनुमति नहीं है।
हालांकि महिलाएं हमारी खेती में काफी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, लेकिन उन्हें वह सम्मान, मान्यता और दर्जा नहीं मिलता है जो उन्हें देश में मिलना चाहिए। उनके श्रम, कड़ी मेहनत, कौशल और ज्ञान और उनकी शक्ति का लोगों के आंदोलनों और हमारे समाज संज्ञान लिया जाना चाहिए। महिला किसान संसद में पारित एक प्रस्ताव का जिक्र करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान में कहा, किसान आंदोलन में महिलाओं के लिए भूमिका और स्थान बढ़ाने के लिए सुविचारित उपाय किए जाने चाहिए।
किसान संसद में फिल्म अभिनेत्री गुल पनाग भी शामिल हुई जो कि शुरू से ही इस विरोध आंदोलन में भागीदार हैं।