किसान आंदोलन बन रहा है ऐतिहासिक जनांदोलन

अतुल कुमार अनजान

गृहमंत्री से वार्ता के बाद किसान संगठनों को सरकार द्वारा भेजे गये प्रस्ताव ने संघ नियन्त्रित मोदी नीत भाजपा सरकार को बेनकाब करके रख दिया, सरकार के रवैये से जाहिर हो गया है कि सरकार किसानों की मांगों को मानने की अपेक्षा किसानों को केवल बरगलाना चाहती है। सरकार द्वारा दिया गया प्रस्ताव किसानों के दिये गये मांग पत्र के एकदम खिलाफ है। सरकार की कारपोरेट समर्थक अडियल मंशा को भांपकर किसानों ने तीनों काले कानूनों और बिजली बिल 2020 को वापस लेने के बाद ही वार्ता के लिए तैयार होने की अपनी मांग को दाहराया है। किसान संगठनों ने कहा कि अगर सरकार उपरोक्त चार कानूनों को वापस लेती है तभी बातचीत का रास्ता खुलेगा।

AIKS Benguluru


दरअसल, सरकार बातचीत के कईं दौर के बाद भी अपने अडियल रवैये पर कायम है और कारपोरेट समर्थक कृषि कानूनों को वापस नहीं लेने पर अडी हुई। हालांकि जब किसानों ने दिल्ली बार्डर पर आकर आंदोलन के लिए डेरा डाला और एक तरफ सरकार ने उनके साथ बातचीत की मंशा जाहिर की और दूसरे तरफ प्रधानमंत्री मोदी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में अपने संबोधन में कृषि कानूनों की खुबियां गिनाई तो यह तभी जाहिर हो गया था कि सरकार की बातचीत किस पटरी पर जाने वाली है। और यह सरकार इसीलिए भी अपने रवैये से टस से मस नहीं हो रही है कि मोदी सरकार बेशक जनता के वोट से सत्ता में आयी हो परंतु असल में यह कारपोरेट के लिए और कारपोरेट के द्वारा कारपोरेट की सरकार ही है।

AIKS Hyderabad


वास्तव में सरकार की बातचीत ऐतिहासिक किसान आंदोलन के कारण उसकी बाध्यता बन गयी है और सरकार केवल यह संदेश देने के लिए किसानों से बातचीत कर रही है कि वह अडियल नहीं है और उसका रवैया लोकतांत्रिक है। यह सब सरकारी पहल जनता को दिखाने के लिए है कि मोदी सरकार किसानों से खुले दिल से बात कर रही है। सच्चाई तो यह है कि मोदी सरकार ने कुछ आंदोलनकारियों से पर्दे के पीछे पहले ही बात शुरू की थी। चार मीटिंगें सार्वजनिक रूप से सरकार ने किसानों की है। 2017 से ही मोदी सरकार की कृषि विरोधी नीति, एमएसपी को कानूनी गारंटी दिए जाने, इसका उल्लंघन करने वालों को जेल भेजने का कानूनी प्रावधान करने, कृषि लागत दर घटाने अर्थात बीच, खाद, कीटनाशक, कृषि औजार, डीजल सहित बिजली पर से जीएसटी हटाने की करते रहे हैं। इन मांगों को लेकर अखिल भारतीय किसान सभा सहित 230 से अधिक संगठनों ने 2017 से 2019 के बीच में मजबूत अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन कर लिया था।

AIKS Telangana

लोकसभा और राज्यसभा में श्री राजीव सेठी (महाराष्ट्र) और के.के. रागेश (केरल) ने निजी बिली पेश कर किसानों की मांगों पर कानून बनाने की सिफारिश मोदी सरकार से की थी। सरकार ने इसे किनारे कर दिया। लेकिन किसान संगठनों ने देशव्यापी स्तर पर जिन बिलों पर धरना, प्रदर्शन, गोष्ठियां कर व्यापक जनमत बनाया। इन्हीं मांगों को लेकर लगभग तीन दशकों के बाद किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले 2018-19 में लाखों किसानों ने दिल्ली आकर संसद पर प्रदर्शन किया। जिन्हें ट्रेड यूनियनों, महिला, छात्र, नौजवान, लेखक, रंगकर्मियों, देश के प्रबु( विख्यातजनों सहित 21 राजनीतिक दलों के नेताओं ने किसान मांग पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए किसानों के समर्थन में जंतर-मंतर दिल्ली में रैली में अपने विचार व्यक्ति किये। कालांतर में सारे देश में किसान संघर्ष समन्वय समिति के जिला और ब्लाॅक स्तर पर सभी किसान समर्थक समूहों को लेकर आंदोलनरत है। विगत 26 अक्टूबर 2020 को केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के द्वारा केन्द्र सरकार द्वारा पारित चार लेबर कोड के खिलाफ दिए गए आम हड़ताल के समर्थन में किसान संघर्ष समन्वय समिति ने अखिल भारतीय किसान सभा के प्रस्ताव पर ग्रामीण भारत बंद का ऐलान किया।

AIKS Dehradoon

मजदूर-किसानों के इस बंद ने ऐतिहासिक बंद का स्वरूप ले लिया। देश के बैंक, बीमा, साधारण बीमा, सार्वजनिक क्षेत्र, परिवहन सहित सभी क्षेत्रों के कामगार हड़ताल पर उतरे और किसान सभी अपने डंडे-झंडे के साथ लाखों संख्या में उतर पड़े जिसमें 25 करोड़ लोगों ने हड़ताल में भाग लिया। देश के साधारण जन और कमेरों ने मजदूरों और किसानों के संघर्ष के सहानुभूति व्यक्त करते हुए अपना समर्थन दिया।

AIKS Godavri Pedpalli

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, मोर्चा एवं अन्य संगठनों के आह्वान पर 5 नवंबर 2020 को देशव्यापी चक्का जाम का आह्वान किया गया और देश के 26 राज्यों में किसानों ने राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्गो को घंटों अवरोध करके लोकतांत्रिक ढंग से मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ और तीन कृषि कानून सहित बिजली बिल 2020 को वापस लेने के लिए अपना प्रतिरोध दर्ज कराया। इसका कारण किसान आंदोलन का लगातार व्यापक और सघन होते जाना है। 8 दिसंबर की हडताल ने किसानों की आवाज को और अधिक प्रभावी बना दिया है, इसीलिए मोदी सरकार के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबसे विश्वस्त माने जाने वाले अमित शाह ने किसानों से 9 दिसंबर की निर्धारित बातचीत को रद्द हडताल की व्यापकता को देखते हुए 8 दिसंबर की शाम को ही किसानों को वार्ता के लिए बुला भेजा था। परंतु इस सारी कवायद का नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा, सरकार ने वहीं दोहराया जिसे वे पिछली मीटिंगों में कह चुके थे अन्तर केवल इतना था कि अबकी यह यह बातें लिखित में दोहरा दी गयी।

AIKS Hosur Tamilnadu


अब जहां तक सवाल 8 दिसंबर की हडताल और किसान आंदोलन का है तो उसके लिए सभी किसान संगठनों विशेषकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने पूरे देश के सभी जनवादी, प्रगतिशील और आंदोलनकारी संगठनों, जिसमें, ट्रेड यूनियन संगठन, महिला, शिक्षक, छात्र, नौजवान और क्षेत्रीय दलों सहित राजनीतिक संगठनों से 8 दिंसबर के भारत बंद में शामिल होने का आहवान किया था। और जिसका नतीजा साफ दिखाई पडा देशभर में ना केवल किसान बल्कि मजदूर संगठन, छात्र, शिक्षक, महिला संगठन सभी 8 दिसंबर की हडताल में शामिल रहे। देश के 500 किसान संगठनों द्वारा आयोजित भारत बंद को देश के विभिन्न छात्र, नौजवान महिला, श्रमिक संगठनों, व्यापार मंडलों, परिवहन संगठनों सहित संपूर्ण ग्रामीण भारत के द्वारा खुला समर्थन मिलने के कारण केंद्र की मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ ऐतिहासिक जन समर्थन मिला।

देश की 24 राजनीतिक पार्टियों सहित दस राज्यों ;झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरलद्ध के मुख्यमंत्रियों का भी समर्थन 8 दिसंबर 2020 के भारत बंद को मिला। भारतीय जनता पार्टी के असम में सरकार में शामिल असमगढ़ परिषद ने बंद का समर्थन किया तथा राजस्थान में बीजेपी के सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल के दो विधायक ने भी बंद का समर्थन किया। राजस्थान देश के 90 करोड़ लोगों ने सीधे तौर पर इस भारत बंद में अपने अपने तरीके से समर्थन देकर इसे सफल बनाया। बहुत से लोग जो इस भारत बंद में शामिल नहीं हुए लेकिन वह किसानों की मांगों का समर्थन करते हुए मोदी सरकार से पूछ रहे हैं कि चार कानूनों को जिन पर किसानों का संयुक्त रूप से विरोध है उसे सरकार वापस क्यों नहीं ले लेती, सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है।

AIKS Puducherry

देश के विभिन्न जन संगठनों द्वारा समर्थित किसानों का भारत बंद ऐतिहासिक रूप से पूर्णतः सफल रहा। प्रधानमंत्री मोदी सरकार झूठे दावों से देश को गुमराह करती रही कि बंद असफल रहा। हकीकत तो यह है की गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि प्राप्त सूचनाओं के अनुसार 22 राज्यों में भारत बंद का गहरा असर रहा। हालांकि प्राप्त सूचनाओं के अनुसार देश के 25 राज्य भारत बंद से प्रभावित रहे।

AIKS Bhuwneshwar

देश के नौजवानों, छात्रों, व्यापारियों, ट्रांसपोर्टरों मजदूर संगठनों, सरकारी कर्मचारियों, साहित्यकारों, कलाकारों ने पूरी तरह से किसानों की आवाज के साथ अपना पूर्ण समर्थन देते हुए यह साबित कर दिया कि यह आंदोलन जन आंदोलन है। मोदी सरकार के द्वारा आंदोलनकारियों को अपमानित करने के लिए असत्य आरोप लगाए जा रहे हैं। देश के केंद्रीय मंत्रियों के द्वारा अभद्र भाषा का प्रयोग चिंताजनक और शर्मनाक है। महिला मंत्री स्मृति ईरानी ने तमाम टेलीविजनों पर विपक्ष को “दोगला” बताकर सारी मर्यादाओं को तोड़ा और अपनी संघी संस्कृति का परिचय देती रही।

AIKS Mumbai


भारत बंद के अलावा मौजूदा समय में किसान आंदोलन का केन्द्र दिल्ली सीमा पर आंदोलनरत किसानों का जमवाडा है। प्रमुख रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दूसरे राज्यों के भी किसान दिल्ली जाने वाले राजमार्गों पर पिछले दो सप्ताह से शान्तिपूर्ण तरीके से धरने पर बैठे हैं और तीनों कृषि कानूनों, बिजली बिल 2020 वापसे लेने सहित अन्य मांगों को लेकर निरंतर आंदोलन कर रहे हैं। किसानों की अन्य मांगों में न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैधानिक बनाना, पराली जलाने पर लगने वाले जुर्माने को वापस करीना, स्वामीनाथन आयोग के फार्मुले को लागू करना और किसानों की उपज की गारंटी करना आदि शामिल हैं। किसानों की मांगें ना केवल किसान समुदाय बल्कि देश की सारी जनता को प्रभावित करती है। दिल्ली सीमा पर जहां किसान दो सप्ताह से टिके हैं तो वहीं इससे प्रेरित होकर पूरे देश में स्थानीय स्तर पर भी किसान आंदोलनरत हैं। किसान आंदोलन की व्यापकता को इसी से समझा जा सकता है कि विभिन्न राज्यों में आंदोलनरत किसानों की संख्या दिल्ली के आसपास जमा किसानों से कईं गुना अधिक है।

Khagaria (Bihar)


आंदोलनकारी किसान सरकार से पांच राउंड बातचीत कर चुके हैं परंतु सरकार का अडियल रवैया जस का तस बना हुआ है। लगता है सरकार ने इन कानूनों को अपनी प्रतिष्ठा प्रश्न बना लिया है। सरकार बेशक अडियल बनी हुई है परंतु देश के किसान जिस प्रकार से मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में लामबंद हो रहे हैं उससे लगता है कि यह किसान आंदोलन आने वाले दिनों में मोदी सरकार की उल्टी गिनती की शुरूआत बन सकता है। सरकार जहां अपने स्टैंड से पीछे नहीं हटना चाहती है तो वहीं आंदोलन का फोकस कारपोरेट विरोधी आंदोलन बनने की राह पर है और यह आंदोलन अब कृषि कानूनों से आगे जाकर जनता से जुडे दूसरे सवालों यथा टोल प्लाजा विरोध, अंबानी-अडानी के उत्पादों के बहिष्कार जैसे सवालों को को भी छूने लगा है। इसी के मद्देनजर अखिल भारतीय किसान सभा सहित अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और किसान आंदोलन से जुडे अन्य संगठनों ने आम लोगों और विभिन्न तबकों से जुडे लोगों से इस अपील से जुडने की अपील की है। आने वाले दिनों में आंदोलन जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन, टोल प्लाजा को मुफ्त करने और अंबानी-अडानी के उत्पादों के बहिष्कार की तरफ बढता है तो इस आंदोलन के साथ मजदूर और कर्मचारी संगठनों के अलावा रिटेल सेक्टर में एफडीआई आने से त्रस्त छोटे दुकानदार और अन्य पेशे भी जुडेंगे और यह किसान आंदोलन एक कारपोरेट हित रक्षक मोदी सरकार के खिलाफ एक निर्णायक आंदोलन बनकर उभरेगा।

AIKS Ahmednagar Maharashtra


अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने तमाम राज्यों के किसानों से दिल्ली पहुंचकर विशाल धरने में शामिल होकर इसे विशालतम रूप देने का आह्वान किया है। 14 दिसंबर को देश के सभी जिलों में अपनी मांगों के समर्थन में प्रदर्शन करने एवं प्रमुखता से इस आंदोलन में देश के दो बड़े औद्योगिक घरानों की भाजपा-मोदी के साथ मिलकर जारी लूट के खिलाफ जनता को जागृत करने के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रणनीति बनाकर अपना प्रतिरोध प्रदर्शित करेंगे।

किसान यूनियनों ने सर्वसम्मति से सरकार के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया
संघर्ष को तेज करने का आह्वान

  1. 12 दिसम्बर को देश भर के टोल प्लाजा को टोल-फ्री बनाया जाएगा।
  2. दिल्ली-जयपुर हाईवे 12 दिसंबर को जाम किया जाएगा।
    स्थानः शाहजहांपुर ;समीप हरियाणा-राजस्थान बार्डरद्ध
  3. 14 दिसम्बर को हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि उत्तरी भारतीय राज्यों के किसानों को दिल्ली आने का आह्वानः ‘दिल्ली चलो’।
  4. दिल्ली से सटे राज्यों के बाहर दूसरे राज्यों के किसानों का 14 दिसम्बर को जिला मुख्यालयों पर धरने व विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान।
  5. सभी जियो , अंबानी/अडानी माॅल, पेट्रोल पंप आदि का बहिष्कार करने का आह्वान
  6. #Farmers_Protest का नया नारा –
    सरकार की असली मजबूरी-अदानी, अंबानी, जमाखोरी

‘मोदी-भाजपा सरकार का है ऐलान’ ‘अंबानी अदानी मिलकर लूटो हिंदोस्तान’

Related Articles

Back to top button