
ऐसे गुल भी खिला सकती हैं विदेशी कंपनियां
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आर.एस. यादव
उदारीकरण और निजीकरण की अंधी दौड़ में भारत सरकार ने विदेशी कंपनियों को लगभग पूरी छूट दे रखी है कि वे भारत की अर्थव्यवस्था के किसी भी क्षेत्र में काम कर सकती है, संपत्तियां खरीद सकती हैं, उद्योग-धंधे लगा सकती हैं, किसी भी भारतीय कंपनी या सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम की हिस्सेदारी खरीद सकती हैं, उसका अधिग्रहण कर सकती हैं और मोटा मुनाफा कमाकर अपनी मातृ कंपनी को उस देश में भेज सकती है जहां वह स्थित है।
विदेशी कंपनियां किसी देश को किस तरह लूटती-तबाह करती हैं और देश को गुलाम तक बना लेती हैं, भारत इसका मुक्तभोगी रहा है। इंगलैंड की एक कंपनी-ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार करने के लिए भारत आई थी। धीरे-धीरे उसने न केवल भारत के व्यापार और बाजार पर कब्जा कर लिया था बल्कि देश की मालिक बन बैठी थी जिसके फलस्वरूप देश दो सौ साल गुलाम रहा।
यह सोचना गलत होगा कि सत्ररहवीं-अठारहवीं सदी में ऐसा होना संभव था, आज नहीं।
विदेशी कंपनियां कैसे-कैसे गुल खिला सकती हैं, ब्रिटेन की कंपनी-केयर्न एनर्जी ने पेरिस में भारत सरकार की संपत्तियों को जब्त करने का जो आदेश हासिल कर लिया है, इसका एक ज्वलंत उदाहरण है।
भारत सरकार और केयर्न एनर्जी के बीच झगड़ा टैक्स के भुगतान को लेकर है। 2006-07 में केयर्न यू.के. (यानी केयर्न एनर्जी की ब्रिटेन स्थित मातृृकंपनी) ने अपने आन्तरिक पुनर्गठन की प्रक्रिया में अपनी कंपनी-केयर्न इंडिया होलिंडग्स के शेयर केयर्न एनर्जी इंडिया को ट्रांसफर किए थे। भारत सरकार का कहना था कि शेयरों के इस ट्रांसफर से केयर्न यू.के. को पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन) हुआ है, अतः उसे 24,500 करोड़ रुपये पूंजीगत लाभ टैक्स के रूप में देना होगा।
कंपनी ने टैक्स देने से इंकार कर दिया। इस पर भारत सरकार ने उसकी संपत्तियों को बेचकर कुछ पैसा वसूल कर लिया। भारत सरकार का दावा है कि उस पर 1.7 अरब डाॅलर ;लगभग 12,750 करोड़ रुपयेद्ध बकाया हैं।
यह झगड़ा चल ही रहा था कि 2011 में केयर्न एनर्जी ने भारत में अपनी कंपनी-केयर्न इंडिया की 58.5 प्रतिशत हिस्सेदारी को 8.7 बिलियन डाॅलर (लगभग 65,250 करोड़ रुपये) में खनन क्षेत्र की ब्रिटेन की ही एक कंपनी-वेदान्ता को बेच दिया।
परंतु भारत सरकार के इनकम टैक्स विभाग ने उसकी लगभग दस प्रतिशत हिस्सेदारी को बेचे जाने पर रोक लगा दी। बाद में सरकार ने बकाया टैक्स वसूल करने के लिए उसकी इस शेयर होल्डिंग के कुछ हिस्से को बेच दिया। केयर्न इंडिया अपनी मातृृ कंपनी -केयर्न एनर्जी यू.के. को जो डिविडेंड (लाभांश) भेजती है, सरकार ने उसे रोक दिया और उसे भी सरकार ने ले लिया।
भारत सरकार के इन कदमों के खिलाफ केयर्न एनर्जी हेग स्थित परमानेन्ट कोर्ट आफ आरब्रिटेशन (जो एक अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत यानी पंचाट है) में चली गयी। मध्यस्थता अदालत ने दिसंबर 2020 में भारत सरकार के खिलाफ फैसला किया और आदेश दिया कि वह केयर्न एनर्जी को ब्याज और जुर्माने की रकम मिलाकर 1.7 अरब डाॅलर (लगभग12,580 करोड़ रुपये) लौटाए। भारत सरकार ने इस आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया।
मध्यस्थता अदालत के केयर्न एनर्जी को 1.7 अरब डाॅलर देने के फैसले का पालन करने से भारत सरकार के इंकार के बाद केयर्न एनर्जी ने ऐसे कुछ देशों-फ्रांस, ब्रिटेन, सिंगापुर आदि में जहां भारत सरकार की संपत्तियां हैं, इस पैसे को वसूल करने के लिए मुकदमे दायर कर दिए। यह एक स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था है।
अब खबर आई है कि केयर्न एनर्जी ने फ्रांस की एक अदालत से, जिसे ऐसे फैसले करने का अधिकार है, भारत सरकार से पैसे की वसूली के लिए पेरिस स्थित 20 भारतीय कंपनियों को जब्त करने का आदेश हासिल कर लिया है। अदालत ने 11 जून को केयर्न एनर्जी को भारत सरकार की संपत्तियों का टेकओवर करने की इजाजत दी। सात जुलाई को इसकी कानूनी प्रक्रिया पूरी हो गई है। इन संपत्तियों में ज्यादातर आवासीय फ्लैट हैं जिनकी कीमत लगभग 177 करोड़ रुपए है।
हैरत की बात है कि इतना सब कुछ हो गया और भारत सरकार को पता ही नहीं है। सरकार का कहना है कि उसे किसी अदालत से कोई नोटिस, आॅर्डर या संदेश नहीं मिला है, तथ्यों की जांच की जा रही है।
आशंका है कि जिन अन्य देशों में केयर्न एनर्जी ने मुकदमें दायर कर रखे हैं, वहां भी ऐसे ही फैसले आ सकते हैं और उन देशों में केयर्न एनर्जी द्वारा चिन्हित भारत की संपत्तियां भी जब्त हो सकती हैं। इन संपत्तियों में एयर इंडिया के विदेशों में खड़े जहाज, शिपिंग कारपोरेशन आॅफ इंडिया के विदेशी बंदरगाहों पर खड़े मालवाहक जहाज और स्टेट बैंक की संपत्तियां भी शामिल बतायी जा रही हैं।
ऐसे ही एक अन्य मामले में भारत सरकार देवास मल्टी मीडिया ;जो एक भारतीय कंपनी हैद्ध के विदेशी निवेशकों की कानूनी चुनौती का सामना कर रही है जो अन्तर्राष्ट्रीय पंचाट से भारत सरकार से 160 मिलियन डाॅलर वसूल करने का आदेश हासिल कर चुके हैं और अब एयर इंडिया की विदेश स्थित संपत्तियांे को जब्त कर अपना बकाया वसूल करना चाहते हैं।
केयर्न एनर्जी ने भारत सरकार को उस दिवाला पिटे व्यक्ति की स्थिति मंे पहुंचा दिया है जो इतना जलील हो रहा है कि उसकी संपत्तियां जब्त/नीलाम की जा रही हैं, जग-हंसाई हो रही है और वह कुछ नहीं कर पा रहा।
भारत सरकार के पास अब संभवतः इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है कि और अधिक जलालत से बचने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने जितना कुल पैसा चुकाने का आदेश दिया है, उससे पांच-सात प्रतिशत कम भुगतान करने जैसा कोई समझौता केयर्न एनर्जी से कर ले। कुछ ले-देकर केयर्न एनर्जी के साथ ऐसा समझौता करने के अलावा सरकार के पास कोई दूसरा उपाय नहीं बचता। सूत्रों के अनुसार, ‘‘स्वाभाविक है कि भारत सरकार ऐसे जब्ती को चुनौती देगी, पर इसके लिए जिस परिसंपत्ति को वह बचाना चाहती है, उसे उसके मूल्य के बराबर कोई वित्तीय जमानत जैसे कि बैंक गारंटी देनी होगी। यदि केयर्न एनर्जी के दावे में कोई दम नहीं मिलता तो अदालत उस गारंटी को वापस दे देगी। परंतु अदालत यदि इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि भारत सरकार अपने दायित्व को पूरा करने में विफल रही है तो उस गारंटी का पैसा केयर्न एनर्जी को दे दिया जाएगा’’। (उद्धृतः द हिन्दू 16 मई, 2021)
निश्चय ही इतनी बड़ी बैंक गारंटी जैसी जमानत देने का फैसला करना भी भारत सरकार के लिए आसान नहीं होगा।
विदेश कंपनियां कितनी ताकतवर है और क्या-क्या गुल खिला सकती है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आशंकाएं व्यक्त की जा रही है कि कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को इस कारण मंत्री पद गंवाना पड़ा है कि उन्होंने अमरीका की कंपनी ट्वीटर से पंगा ले लिया था।