ऐलान-ए-इश्क़

विचार—विमर्श

कि हो गयी है मुद्दतें मुझको उनसे दूर हुए
किसी बहाने से उन्हें आज पास लाया जाए।

था जो राज़-ए-दिल दफ़्न अब तक मेरे अंदर
सर-ए-आम आज इज़हार-ए-दिल किया जाए।

तड़पी थी अबतक मैं जिसके इंतज़ार में
चलो आज उनकी भी इस दर्द से मुलाक़ात करायी जाय

यूँ तो नींद नही आती हमें अक्सर रातों में
चलो एकबार कभी उनकी भी नींद उड़ाई जाए।

वो जो निश्चिंत रहते हैं होकर हमारे ग़मों से बेख़बर
चलो आज उन्हें अपने दर्द से रु-बरु कराया जाय।

जब टकराते है प्याले तो छलक जाता है जाम
चलो आज एक जाम अपनी आंखों से पिलाया जाए।

आज़माया है उसने मुझे ज़िन्दगी के हर मोड़ पर
चलो एक इम्तिहान आज उनका भी लिया जाए।

है इश्क़ का दरिया मेरे अंदर सिर्फ़ उनके ही लिए
भरे महफ़िल आज ऐलान-ए-इश्क़ किया जाए।

मोनिका राज
मधेपुरा , बिहार

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