ईश्वर के नाम पाती

विचार—विमर्श

हे ईश्वर
भर भर आता है मन
देख ये मंजर
कभी बाढ़
कभी बादल फटना
कभी चक्रवर्ती तूफान
कभी लैंडस्लाइड
कभी भूकंप
और अब ग्लेशियर
क्यों रौद्र रूप ले हे ईश
ढाते हो ये कहर
गांव के गांव
बस्तियां , नगर, शहर
सब जाते उजड़
होता कितना नुकसान
जानों और सामान का
कितने घर
कितने परिवार
जाते उजड़
क्या पहले ही दुःख, तकलीफ़
कम हैं जो आप भी हो
कर खफ़ा ढाते हो कहर ऐसे
कभी कोई आंदोलन
कभी कोई बीमारी
कभी सूखा
कभी ज़रूरत से ज़्यादा बारिश
कभी ज़रूरत से ज़्यादा बर्फबारी
कभी ज़रूरत से ज़्यादा गर्मी
ऊपर से आये दिन ये नित नई
प्राकृतिक आपदाएं
हे ईश्वर विनम्र विनती है
तुम से मत लो इतने इम्तिहान
रची है सृष्टि , बनाएं हैं इंसान
दिया है जीवन तो
जीने तो दो
हे ईश्वर करो कृपा
और सुन लो विनम्र विनती
मत हो गुस्सा या बरसाया
करो कहर अपना।।

मीनाक्षी सुकुमारन
नोएडा

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