इंसानियत
छद्म वेश में ढले किरदारों में
जीवन रंगमंच का,
क्या हाल सुनाऊं तुम्हें,,,,,,।
टूट रहे रेशमी प्रीत के जाले,
पेबंद लगी इंसानियत का,
क्या हाल सुनाऊं तुम्हें,,,,,,।
बन रही दीवारें ऊंची,
स्वार्थ से भरे रिश्तो की,
मायूस अभिलाषाओं का ,
क्या हाल सुनाऊं तुम्हें,,,,,,,।
सूख रही गागर ,
प्रेम और श्रद्धा की,
सौहार्द की प्यासी ,
मधुशाला का,
क्या हाल सुनाऊं तुम्हें,,,,,।
मधु वैष्णव “मान्या”
जोधपुर राजस्थान