अब कलम टूट पड़ेगी
अब कलम टूट पड़ेगी ,
अन्यायों के खिलाफ ।
भ्रष्टाचार के उपद्रव से ,
अब चुप नहीं बैठेंगे ।
धर्म – अधर्म के मतभेद नहीं ,
अत्याचारों का आतंक है ।
पिता-पुत्र में अंतरभेद नहीं ,
जहां जाए कलयुगी विनाश है।
हम कर्तव्यपरायणता भूल रहे ,
भूल रहे महाकाव्यों का सार ।
घूसखोरी की अतिभय से ,
दीन – हीन तड़प रहे हैं ।
क्या है ? , क्या होगा जमाना ?
ईश्वर भी आश्चर्य है ।
सत्य – झूठ के अंतरभेद नहीं ,
पैसों के बल से बिक जाते हैं ।
दोषी, निर्दोषी बन जाते हैं ,
फंस जाते हैं निस्सहाय ।
न्याय – अन्याय दिखावा है ,
सत्यमेव जयते है मिथ्या ।
वरुण सिंह गौतम
रतनपुर, बेगूसराय, बिहार