अतीत के पन्ने

राज्य

अतीत के धूमिल पन्नों को जब साफ करने बैठते हैं।
एक एक कर पुरानी यादें साफ होने लगते हैं।।

अतीत के उस किताब में बंद पड़े हैं अपनों का प्यार।
याद उन्हें कर के ही हर्षित हो जाते हैं आप।।

विछोह के कुछ काले पन्ने आज भी जगाते घाव।
अपनों के विछोह का विछड़न आज भी जगाते घाव।

धूमिल पड़े यादों के पन्ने को लगा हुआ हूँ कारने साफ ।
कुछ अपनो के घात का गाथा कुछ लोगों का छिप कर वार।।

हृदय तार के किसी कोने से जब आती वो पुरानी आवाज।
नए तार को झंकृत करती अपनो के साथ विताये याद।।

अतीत किताब के उस मध्य पन्नों से झांकते रहते हैं मित्रों का याद।
मित्र मंडली संग साथ विताये हंसी खुसी और उल्लास के याद।।

पढ़ने लिखने की होड़ लगी थी आगे बढ़ने की वो चाह।
ईर्ष्या द्वेष बिना पछाड़ देने की और मित्रों से आगे बढ़ने के चाह।।

अतीत किताब के कुछ पन्ने हैं मेहनत और मजदूरी का साथ ।
जीवन पथ पर आगे बढ़ना परिवार और समाज के साथ।।

आगे जोड़ना है किताब में जीवन के कुछ पन्ने खास।
अपनी आने वाली पीढ़ी में छोड़ जाना अपना अतीत किताब।।

कमलेश झा
नगरपारा भागलपुर

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